1 Nabucodonosor | | | | |
rey, | | | | |
a todos los pueblos, | | | | |
naciones | | | | |
y | | | | |
lenguas que | moran | | | |
| | en toda la tierra: | | |
Paz | os sea multiplicada. | | | |
2 | Conviene | | | | | |
| que | | | | | |
| yo | declare | las señales | | | |
| | | y | | | |
| | | milagros | | | |
| | | que | | | |
| | | el Dios Altísimo | ha hecho conmigo. | | |
¡ 3 Cuán grandes | son | sus señales, | | |
| | y | | |
| | cuán potentes sus maravillas! | | |
| | Su reino, | | |
| | reino sempiterno, | | |
| | y | | |
| | su señorío | | |
| | de generación | | |
| | en generación. | | |
4 Yo Nabucodonosor | estaba | tranquilo | | |
| | en mi casa, | | |
| | y | | |
| | floreciente | | |
| | en mi palacio. | | |
5 | Vi | un sueño | | | |
| | que | | | |
| | | me espantó, | | |
y | | | | | |
| tendido | | | | |
| | en cama, | | | |
| | las imaginaciones | | | |
| | y | | | |
| | visiones | | | |
| | de mi cabeza | me turbaron. | | |
6 | mandé | | | | |
| | Por esto | | | |
| que | | | | |
| | vinieran | | | |
| | | delante de mí | | |
| | | todos los sabios | | |
| | | de Babilonia, | | |
para que | | | | | |
| me mostrasen | la interpretación | | | |
| | del sueño. | | | |
7 Y | | | | |
| vinieron | magos, | | |
| | astrólogos, | | |
| | caldeos | | |
| | y | | |
| | adivinos, | | |
y | | | | |
| les dije | | | |
| el sueño, | | | |
pero | | | | |
no | me pudieron mostrar | su interpretación, | | |
8 hasta que | | | | | | |
Daniel, | entró | | | | | |
| | delante de mí | | | | |
| | cuyo nombre | es | Beltsasar, | | |
| | | | como el nombre | | |
| | | | de mi dios, | | |
| | y | | | | |
| | en | quien mora | el espíritu | | |
| | | | de los dioses santos. | | |
| Conté | el sueño, | | | | |
| | delante de él | | | | |
| diciendo: | | | | | |
9 Beltsasar, jefe | | | | | |
de los magos, | | | | | |
ya que | | | | | |
| he entendido | | | | |
| que | | | | |
| | hay | | | |
| | | en ti | | |
| | | espíritu | | |
| | | de los dioses santos, | | |
| y que | | | | |
| ningún misterio se | te esconde, | | | |
| declárame | las visiones | | | |
| | de mi sueño | | | |
| | que | | | |
| | | he visto, | | |
| | y | | | |
| | su interpretación. | | | |
10 Estas | fueron | las visiones | | | | |
| | de mi cabeza | | | | |
| mientras estaba | | | | | |
| | en mi cama: | | | | |
| Me parecía ver | | | | | |
| | en medio de la tierra un árbol, | | | | |
| | cuya altura | era | grande. | | |
11 este árbol, | Crecía | | | |
y | | | | |
| se hacía | fuerte, | | |
y | | | | |
su copa | llegaba | | | |
| | hasta el cielo, | | |
y | | | | |
se | le alcanzaba | | | |
| | a ver | | |
| | desde todos los confines | | |
| | de la tierra. | | |
12 Su follaje | era | hermoso | | |
| | y | | |
| | su fruto abundante, | | |
y | | | | |
| había | | | |
| | en él alimento | | |
| | para todos. | | |
| se ponían | las bestias | | |
| | del campo, | | |
| | Debajo de él | | |
| | a la sombra | | |
y las aves | | | | |
del cielo, | hacían | morada | | |
| | en sus ramas | | |
y | | | | |
toda carne. | se mantenía | | | |
| | de él | | |
13 | Vi | | | |
| | en las visiones | | |
| | de mi cabeza | | |
| mientras estaba | | | |
| | en mi cama, | | |
que | | | | |
| he aquí | | | |
un vigilante | | | | |
y | | | | |
santo | descendía | | | |
| | del cielo. | | |
14 Y | | | | | | | |
| clamaba fuertemente | | | | | | |
y | | | | | | | |
| decía así: | | | | | | |
| | Derribad | el árbol, | | | | |
| y | | | | | | |
| | cortad | sus ramas, | | | | |
| | quitadle | el follaje, | | | | |
| y | dispersad | su fruto; | | | | |
| | váyanse | las bestias | | | | |
| | | que | | | | |
| | | | están | | | |
| | | | | debajo de él, | | |
| | | | y | | | |
| | | | las aves | | | |
| | | | de sus ramas. | | | |
15 Mas | | | | |
la cepa | | | | |
de sus raíces | dejaréis | | | |
| | en la tierra, | | |
| | con atadura | | |
| | de hierro | | |
| | y | | |
| | de bronce | | |
| | entre la hierba | | |
| | del campo; | | |
| sea mojado | | | |
| | con el rocío | | |
| | del cielo, | | |
y | | | | |
| sea | | | |
| | con las bestias | | |
| | su parte | | |
| | entre la hierba | | |
| | de la tierra. | | |
16 Su corazón | | | | |
de hombre | sea cambiado, | | | |
y | | | | |
| le sea dado | corazón | | |
| | de bestia, | | |
y | | | | |
| pasen | siete tiempos. | | |
| | sobre él | | |
17 La sentencia | es | | | | | |
| | por decreto | | | | |
| | de los vigilantes, | | | | |
| | y | | | | |
| | por | dicho | | | |
| | | | de los santos | | |
| | | | la resolución, | | |
para que | | | | | | |
| conozcan | los vivientes | | | | |
| que | | | | | |
| el Altísimo | gobierna | el reino | | | |
| | | de los hombres, | | | |
| y que | | | | | |
| a quien él | quiere | | | | |
| lo | da, | | | | |
| y | | | | | |
| | constituye | | | | |
| | | sobre él | | | |
| | | al más bajo | | | |
| | | de los hombres. | | | |
18 Yo | | | | |
el rey Nabucodonosor | he visto | este sueño. | | |
Tú, | | | | |
pues, | | | | |
Beltsasar, | dirás | la interpretación | | |
| | de él, | | |
porque | | | | |
todos los sabios | | | | |
de mi reino | no han podido mostrarme | su interpretación; | | |
mas | | | | |
tú | puedes, | | | |
porque | | | | |
| mora | | | |
| | en ti | | |
| | el espíritu | | |
| | de los dioses santos. | | |
19 Entonces | | | | | | |
Daniel, | | | | | | |
cuyo nombre | era | Beltsasar, | | | | |
| quedó | atónito | | | | |
| | casi una hora, | | | | |
| | y | | | | |
| | sus pensamientos lo | turbaban. | | | |
El rey | habló | | | | | |
y | | | | | | |
| dijo: | | | | | |
| Beltsasar, no | te turben | ni el sueño | | | |
| | | ni su interpretación. | | | |
Beltsasar | respondió | | | | | |
y | | | | | | |
| dijo: | | | | | |
| Señor mío, | | | | | |
| el sueño | sea | | | | |
| | | para tus enemigos, | | | |
| | | y | | | |
| | | su interpretación | | | |
| | | para los que mal | te quieren. | | |
20 El árbol que | viste, | | | | |
| que | | | | |
| | crecía | | | |
| y | | | | |
| | se hacía | fuerte, | | |
| y | | | | |
| cuya copa | llegaba | | | |
| | | hasta el cielo, | | |
| y que | | | | |
| | se veía | | | |
| | | desde todos los confines | | |
| | | de la tierra, | | |
21 cuyo follaje | era | hermoso, | | | | |
| | y | | | | |
| | su fruto abundante, | | | | |
| | y | | | | |
| | en que | había | alimento | | |
| | | | para todos, | | |
| | debajo | | | | |
| | del | cual moraban | las bestias | | |
| | | | del campo, | | |
| | y | | | | |
| | en cuyas ramas | anidaban | las aves | | |
| | | | del cielo, | | |
22 tú mismo | eres, | | | |
oh rey, | | | | |
que | creciste | | | |
y | | | | |
| te hiciste | fuerte, | | |
pues | | | | |
tu grandeza | creció | | | |
y | | | | |
| ha llegado | | | |
| | hasta el cielo, | | |
| | y | | |
| | tu dominio | | |
| | hasta los confines | | |
| | de la tierra. | | |
23 Y | | | | | | | | |
en cuanto a lo que | vio | el rey, | | | | | | |
| un vigilante | | | | | | | |
| y | | | | | | | |
| santo que | descendía | | | | | | |
| | | del cielo | | | | | |
| y | | | | | | | |
| | decía: | | | | | | |
| | | Cortad | el árbol | | | | |
| | y | | | | | | |
| | | destruidlo; | | | | | |
| | mas | | | | | | |
| | | dejaréis | la cepa | | | | |
| | | | de sus raíces | | | | |
| | | | en la tierra, | | | | |
| | | | con atadura | | | | |
| | | | de hierro | | | | |
| | | | y | | | | |
| | | | de bronce | | | | |
| | | | en la hierba | | | | |
| | | | del campo; | | | | |
| | y | | | | | | |
| | | sea mojado | | | | | |
| | | | con el rocío | | | | |
| | | | del cielo, | | | | |
| | | | y | | | | |
| | | | con las bestias | | | | |
| | | | del campo | sea | su parte, | | |
| | hasta que | | | | | | |
| | siete tiempos; | pasen | | | | | |
| | | | sobre él | | | | |
24 esta | es | la interpretación, | | |
oh rey, | | | | |
y | | | | |
la sentencia | | | | |
del Altísimo, que | ha venido | | | |
| | sobre mi señor | | |
| | el rey: | | |
25 Que | | | | | | | | |
| te echarán | | | | | | | |
| | de | | | | | | |
| | entre los hombres, | | | | | | |
| | y | | | | | | |
| | con las bestias | | | | | | |
| | del campo | será | tu morada, | | | | |
| | y | | | | | | |
| | con hierba | | | | | | |
| | del campo | te apacentarán | como | | | | |
| | | | a los bueyes, | | | | |
| | y | | | | | | |
| | con el rocío | | | | | | |
| | del cielo | serás bañado; | | | | | |
| | y | | | | | | |
| | siete tiempos | pasarán | | | | | |
| | | | sobre ti, | | | | |
| | hasta que | | | | | | |
| | | conozcas | | | | | |
| | | que | | | | | |
| | | el Altísimo | tiene | dominio | | | |
| | | | | en el reino | | | |
| | | | | de los hombres, | | | |
| | | y que | | | | | |
| | | lo | da | | | | |
| | | | | a quien él | quiere. | | |
26 Y | | | | | |
en cuanto a la orden | | | | | |
de | dejar | | | | |
| | en la tierra la cepa | | | |
| | de las raíces | | | |
| | del mismo árbol, | | | |
| significa | | | | |
| que | | | | |
| tu reino | te quedará | firme, | | |
| luego que | | | | |
| | reconozcas | | | |
| | que | | | |
| | el cielo | gobierna. | | |
27 Por tanto, | | | | |
oh rey, | acepta | mi consejo: | | |
tus pecados | redime | | | |
| | con justicia, | | |
y | | | | |
tus iniquidades | haciendo | misericordias | | |
| | para con los oprimidos, | | |
pues | | | | |
| tal vez será | eso | | |
| | una prolongación | | |
| | de tu tranquilidad. | | |
28 Todo esto | vino | | | |
| | sobre el rey Nabucodonosor. | | |
29 Al cabo | | | | |
de doce meses, | paseando | | | |
| | en el palacio real | | |
| | de Babilonia, | | |
30 el rey | habló | | | | | | |
y | | | | | | | |
| dijo: | | | | | | |
| | ¿No es | ésta | | | | |
| | | la gran Babilonia | | | | |
| | | que | | | | |
| | | yo | edifiqué | | | |
| | | | | para casa real | | |
| | | | | con la fuerza | | |
| | | | | de mi poder, | | |
| | | | | y | | |
| | | | | para gloria | | |
| | | | | de mi majestad? | | |
31 | Aún estaba | la palabra | | | | | |
| | en la boca | | | | | |
| | del rey, | | | | | |
| cuando vino | una voz | | | | | |
| | del cielo: | | | | | |
| | A ti se | te dice, | | | | |
| | | rey Nabucodonosor: | | | | |
| | | El reino | ha sido quitado | | | |
| | | | | de ti; | | |
32 y | | | | | | |
de | | | | | | |
entre los hombres | te arrojarán, | | | | | |
y tu habitación, | será | | | | | |
| | con las bestias | | | | |
| | del campo | | | | |
y | | | | | | |
| te apacentarán; | como | | | | |
| | a los bueyes | | | | |
y | | | | | | |
siete tiempos | pasarán | | | | | |
| | sobre ti, | | | | |
hasta que | | | | | | |
| reconozcas | | | | | |
| que | | | | | |
| el Altísimo | tiene | el dominio | | | |
| | | en el reino | | | |
| | | de los hombres, | | | |
| y | | | | | |
| lo | da | | | | |
| | | a quien él | quiere. | | |
33 la palabra | se cumplió | | | |
| | En la misma hora | | |
| | sobre Nabucodonosor, | | |
y | | | | |
| fue echado | | | |
| | de | | |
| | entre los hombres; | | |
y | | | | |
| comía | hierba | | |
| | como los bueyes, | | |
y | | | | |
su cuerpo | se mojaba | | | |
| | con el rocío | | |
| | del cielo, | | |
hasta que | | | | |
su pelo | creció | como plumas | | |
| | de águila, | | |
| | y | | |
| | sus uñas | | |
| | como las | | |
| | de las aves. | | |
34 Mas | | | | | |
al fin | | | | | |
del tiempo | | | | | |
yo Nabucodonosor | alcé | mis ojos | | | |
| | al cielo, | | | |
y | | | | | |
mi razón | me fue devuelta; | | | | |
y | | | | | |
| bendije | | | | |
| | al Altísimo, | | | |
y | | | | | |
| alabé | | | | |
y | | | | | |
| glorifiqué | | | | |
| al que | vive para siempre, | | | |
| | cuyo dominio | es | sempiterno, | |
| | y | | | |
| | su reino | | | |
| | por todas las edades. | | | |
35 Todos los habitantes | | | | | |
de la tierra | son considerados | como nada; | | | |
y | | | | | |
él | hace | | | | |
| | según su voluntad | | | |
| | en el ejército | | | |
| | del cielo, | | | |
| | y | | | |
| | en los habitantes | | | |
| | de la tierra, | | | |
y | | | | | |
| no hay | | | | |
| | quien detenga | su mano, | | |
| y | | | | |
| | le diga: | | | |
| | ¿Qué | haces? | | |
36 mi razón | me fue devuelta, | | | |
| | En el mismo tiempo | | |
y | | | | |
la majestad | | | | |
de mi reino, | | | | |
mi dignidad | | | | |
y | | | | |
mi grandeza | volvieron | | | |
| | a mí, | | |
y | | | | |
mis gobernadores | | | | |
y | | | | |
mis consejeros | me buscaron; | | | |
y | | | | |
| fui restablecido | | | |
| | en mi reino, | | |
y | | | | |
mayor grandeza | me fue añadida. | | | |
37 Ahora | | | | | | |
yo Nabucodonosor | alabo, | | | | | |
| engrandezco | | | | | |
y | | | | | | |
| glorifico | | | | | |
| | al Rey | | | | |
| | del cielo, | | | | |
porque | | | | | | |
todas sus obras | son | verdaderas, | | | | |
| | y | | | | |
| | sus caminos justos; | | | | |
y | | | | | | |
él | puede humillar | | | | | |
| | a los que | andan | | | |
| | | | con soberbia. | | |